मसलते रहें वो
(एक पुरानी घिनौनी घटना के सन्दर्भ में जिसमें एक बाप और भाई की हत्या सिर्फ इसलिये की गई थी क्योंकि एक बेटी और एक बहन पर अश्लील छींटाकसी का विरोध किया उस बाप ने उस भाई ने)
मसलते रहें वो
नापाक पैरों तलों
मेरे चमन की पाकीज़ा
लाड़ दुलार नाज़ों से पली
गुलशन की मेरी कलियों को,
क्यों कर मैं
चश्मेगुहरबार ना हो जाऊं
या गदर कर दूँ
मैं सहूं देखूं, कैसे
और क्योंकर मैं
ऐतराज़ भी ना करुँ ।
उन पैरों को तोड़ने का हक़
हासिल है हमें कुदरतन
फिर भी
सिर्फ़ ऐतराज़ भर ही करने से,
इस बेहयाई का
बिछ्ड़ने की सज़ा मिले मुझे
मेरे चमन की बुलबुल से
और मैं जिन्दा ना रहूँ,
जिन्दा ना रहूँ
क्यों जिन्दा ना रहूँ ।।
@नील पदम्