मल्हारी गीत “बरसी बदरी मेघा गरजे खुश हो गये किसान।
रिमझिम रिमझिम मेघा बरसे,
लौटी सजल बयार।
सूखी कुम्हलाई बेला पर,
छाने लगी बहार।।
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नजर उठाकर नभ में देखें,
चातक मोर चकोर।
सन-सन करती पवन मचाती,
बेमतलब का शोर।
मिलकर सारे थलचर नभचर,
करते खूब गुहार।
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बाड़े में रंभाई बछिया,
मस्त हुई मस्तानी।
खूंटा तोड़ दौड़ता बछड़ा,
उस पर चढी जवानी।।
बबुआ की अम्मा तब मारे,
उस को छड़ी बुहार।
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घाम घटी कुछ मौसम बदला
नभ में छायी बदरी।
दूर गगन में गरज चंचला
चमक उठी तब बिजुरी।।
धरती ने आंचल फैलाया,
पड़ने लगी फुहार।
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बरसी बदरी मेघा गरजे
खुश हो गये किसान।
जीवन सब ही जीव जनों का
हुआ सरल आसान।।
चलने लगी धौंकनी अविरल
प्रमुदित हुआ लुहार।
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नयी भोर का उदय हुआ है,
झरने लगे शुभ्र प्रपात।
नयी ऊर्जा नवल अंकुरण,
नये-नये हैं कोमल पात।
पूरा करके सृष्टि, चक्र को,करे सतत उपकार।।
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