मर्यादित जीवन
मर्यादाए बहुत जरूरी है, हम सबके ही जीवन में।
मर्यादाओं की रेखा लाघी तो, लंकेश हरण तब कर पाया।।
मर्यादाए निभाती पांचाली तो, अपमान कभी ना सहपाती।
मर्यादित ना हो जीवन तो, जीवन फिर ये कुछ भी नहीं।।
मर्यादाए दिखाती संस्कार हमारे, मर्यादाए बहुत जरूरी है।
मर्यादाए अगर उलझाती हैं, मर्यादाए ही फिर सुलझाती हैं।।
मर्यादाए तो हर जीवन में, सही रहा दिखलाती हैं।
मर्यादाए अगर ना होगी तो, अमर्यादित फिर जीवन है।।
मर्यादाए ही तो दिखलाती हैं, संस्कार हमारे कैसे हैं।
मर्यादित श्रीराम रहे तो, मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए।।
मर्यादाए अगर ना होंगी तो, ना मान रहे ना सम्मान मिले।
मर्यादाए कभी न तोड़ो तुम, मर्यादाए विश्वास ही होती हैं।।
मर्यादाए जो तुम से टूट गई, समझो विश्वास भी टूट गया।
मर्यादाए जब-जब टूटी हैं, देखो तब-तब संग्राम हुए।।
मर्यादाए सदा ही जीवन में, सम्मान दिलाती हैं सुन लो।
मर्यादित रहे जो नारी तो, दोनों कुल का ही मान बड़े।।
मर्यादित हो जो पुरुष अगर, सम्मान सदा ही पाता है।
सीख न दो तुम बच्चों को, मर्यादाए सिखा दो उनको तुम।।
शीश न झुकने देंगे वो, बस ये बात बतादो उनको तुम।
मर्यादाए बहुत जरूरी है, हम सबके ही जीवन मे।।
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“ललकार भारद्वाज”