मर्यादा
जिस प्रकार किसी को मनचाही स्पीड में गाड़ी चलाने का अधिकार नहीं है, क्योंकि रोड सार्वजनिक है। ठीक उसी प्रकार किसी भी लड़के या लड़की को मनचाही अर्धनग्नता युक्त वस्त्र पहनने का अधिकार नहीं है क्योंकि जीवन सार्वजनिक है। एकांत रोड में स्पीड से चलाओ, एकांत जगह में अर्द्धनग्न रहो। मगर सार्वजनिक जीवन में नियम मानने पड़ते हैं।
भोजन जब स्वयं के पेट में जा रहा हो तो केवल स्वयं की रुचि अनुसार बनेगा, लेकिन जब वह भोजन परिवार खायेगा तो सबकी रुचि व मान्यता देखनी पड़ेगी।
लड़कियों का अर्धनग्न वस्त्र पहनने का मुद्दा उठाना उतना ही जरूरी है, जितना लड़कों का शराब पीकर गाड़ी चलाने का मुद्दा उठाना जरूरी है। दोनों में एक्सीडेंट होगा ही।
अपनी इच्छा केवल घर की चारदीवारी में ही उचित है। घर से बाहर सार्वजनिक जीवन में कदम रखते ही सामाजिक मर्यादा लड़का हो या लड़की उसे रखनी ही होगी। बड़ी उम्र की लड़कियों का बच्चों की सी फटी निक्कर पहनकर छोटी टॉप पहनकर फैशन के नाम पर घूमना भारतीय संस्कृति का अंग नहीं है।
जीवन भी गिटार या वीणा जैसा वाद्य यंत्र हो, ज्यादा कसना भी गलत है और ज्यादा ढील छोड़ना भी गलत है।
संस्कार की जरूरत स्त्री व पुरुष दोनों को है, गाड़ी के दोनों पहियों में संस्कार की हवा चाहिए, एक भी पंचर हुआ तो जीवन डिस्टर्ब होगा।
नग्नता यदि मॉडर्न होने की निशानी है, तो सबसे मॉडर्न जानवर है जिनकी संस्कृति में कपड़े ही नही है। अतः जानवर से रेस न करें, सभ्यता व संस्कृति को स्वीकारें। कुत्ते को अधिकार है कि वह कहीं भी यूरिन पास कर सकता है, सभ्य इंसान को यह अधिकार नहीं है। उसे सभ्यता से बन्द टॉयलेट उपयोग करना होगा। इसी तरह पशु को अधिकार है नग्न घूमने का, लेकिन सभ्य स्त्री या पुरुष को उचित वस्त्र का उपयोग सार्वजनिक जीवन में करना ही होगा।
अतः विनम्र अनुरोध है, सार्वजनिक जीवन में मर्यादा न लांघें, सभ्यता से रहें।
आजादी विचारों में होनी चाहिये। आजादी देश, धर्म और परिवार हित में होने वाले कार्यो में होनी चाहिये। जहाँ माता पद्मिनी 16000 माता-बहनों के साथ जौहर कर लेती है ताकि किसी की बुरी दृष्टि तक ना पड़ पाए। आज उसी देश मे नग्नता के बाजार लगने लगे हैं।
जहाँ पूरा विश्व हमारी संस्कृति अपना रहा है वहाँ हम अपनी मर्यादाओं को भूल रहे है। कहां जा रहे हैं हम ? सोचिए…
आगे आप लोगों की मर्जी ???