“मर्यादा”
“मर्यादा”
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पुष्प सदा बनकर जीएं,
कांटों का भी न अपमान हो,
मर्यादा सबकी होती है,
उस मर्यादा का सम्मान हो।
जग में ऐसा काम करें,
जीवन का श्रृंगार बनें,
ऐसे ढांचे में ढल जाए,
प्रेरणास्रोत बन जाए।
चले ऐसे पदचिह्न पर,
विचारों का विस्तार हो,
प्रसन्न चित्त रखें निज को सदा,
सर्वत्र मानवता का जयकार हो।
पर्वत सा ऊंचा बनें,
धूप में छांव बनें,
काम आएं जन-जीवन के,
एक ऐसी मिसाल बनें ।।
वर्षा (एक काव्य संग्रह)से/ राकेश चौरसिया