मर्यादा
अब कहाँ हैं बुद्ध गौतम
तम ही तम सर्वत्र है
अन्याय की बंशी सुनो
यह यत्र है और तत्र है।
नवजात की लाशें हैं बिखरी
कूड़ों के ढेर में
श्वान उनको है बचाता
क्या विधि का लेख है!
कितना गिरेगा यह मनुज
दुःख बड़ा है,पीर है।
क्या क्या करेंगे संत जग में
मर्यादा नहीं गंभीर है।