मर्यादा
लघुकथा
मर्यादा
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पिछले 15 वर्षों से अनाथ रतन मि. वर्मा जी के यहां काम करता था। वर्मा जी हाईकोर्ट में वकील थे। वर्मा जी की पत्नी का गत वर्ष कोरोना से निधन हो गया था। उस समय भी रतन अपनी परवाह किए बगैर आखिरी क्षणों तक उनकी सेवा करता रहा था।
संध्या मि. वर्मा की इकलौती बेटी थी। उसकी शादी की चिंता वर्मा जी को हो रही थी। रतन यह बात समझता था। वैसे भी वो वर्मा जी का चहेता था। जाने क्यों वर्मा जी को रतन पर पूरा भरोसा था। तभी तो संध्या को दो तीन बार रतन के भरोसे अकेला छोड़कर दो तीन दिनों के लिए बाहर भी जा चुके थे।
आज रतन डरते डरते वर्मा जी के पास आया और हाथ जोड़कर बोल-सर जी। अगर बुरा न माने तो मैं आपको संध्या बहन के लिए एक रिश्ता बताऊँ।
वर्मा जी बोले-तो बताओ न इसमें डरने की क्या बात है?
जी डरने जैसी बात तो नहीं है, मगर संध्या बहन को शायद अच्छा न लगे कि उनके रिश्ते की चिंता उनके नौकर को क्यों है?
…….शायद तुम ठीक भी हो और गलत भी। परंतु तुम जरूर बताओ।
रतन ने रिश्ते के बारे में बताया तो वर्मा जी की बाँछे खिल गईं। वे सोचने लगे काश ये रिश्ता हो जाय।
तभी संध्या कमरे में आते हुए बोली- मुझे पता है रतन भैया कि किसी लड़की की शादी के लिए उसके माँ बाप किस किस से मदद नहीं माँगते। मगर संयोग जहां होता है वहीं होता है। यह सही है कि मैंनें आपको वो सम्मान नहीं दिया जिसके हकदार आप हैं, मगर आपको कभी नौकर भी नहीं माना। आप पर हमेशा भरोसा किया।
लेकिन एक जवान लड़की की अपनी मर्यादा होती है।बस उसी में बँधी रही। आपने भी कदम कदम पर मर्यादा की लक्ष्मण रेखा को समझा। लेकिन आज आपने आगे बढ़कर भाई का फर्ज निभाने का प्रयास किया। पहले ही आप जान जोखिम में डालकर माँ की बेटे से बढ़कर सेवा कर चुके हैं।
मुझे नहीं पता पापा क्या सोचेंगे, मगर मेरी इच्छा है कि मेरी शादी में आप मेरे भाई होने का फर्ज निभाए और बड़े भाई की तरह अपना आशीर्वाद देकर मेरी डोली को कंधा देकर विदा करें।
रतन की आँँखों से बहती गँगा यमुना की धारा को आगे बढ़कर संध्या ने पोंछा और उसके गले लगकर बोली-इन्हें मेरी विदाई के लिए सँभाल कर रखिए भैया।
रतन ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा-हाँ बहन।
मि. वर्मा इस दृश्य को देख भावुक हो गये और मुड़कर अपनी पत्नी के चित्र को देखने लगे।
शायद बाप होने की मर्यादा के कारण बच्चों से अपने आँसू छुपाने का उपक्रम करने के लिए विवश भी।
?सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.
8115285921
©मौलिक, स्वरचित