*मर्यादा पुरूषोत्तम राम*
मर्यादा पुरूषोत्तम राम
आज मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम जी की महिमा का गुणगान करना बेहद खूबसूरत काम है।
श्री राम की छबि अद्भुत निराली है उनके प्रेम भावना कर्म प्रधान विश्व करि राखा
जो जस करहि तस फल चाखा
यह कहावत चरितार्थ होती है किसी भी मनुष्य को कर्म से ही पहचाना जा सकता है कर्म से दूसरे प्राणी को आहत ना हो राम धुन प्रेम से गुनगुनाते हुए जो ह्रदय में आत्म संतुष्टि मिलती है उसे बयां नही किया जा सकता है।
श्री राम सरल ,सहज , सुंदर व्यक्तित्व वाले थे।उनके नियम अनुशासन अडिग रहते क्योंकि वे सूर्यवंशी थे।
रघुकुल रीति सदा चली आई
प्राण जाई पर वचन ना जाई
वन गमन करते हुए माता कैकयी से यह वचन शिरोधार्य किया था और परिवार जनों ,गुरुजनों से आशीष लेते हुए वन की ओर प्रस्थान किया था।
अपने वचनों के अनुसार वनवासी भेष धारण कर चौदह वर्ष का वनवासी रूप धारण कर अपनी अद्भुत लीलाएँ दिखलाई थी।
केवट ,शबरी, को तारा दिया था और पत्थर बनी अहिल्या को उबारा था अनेक राक्षसों को मारकर वापस अयोध्या नगरी लौट आये थे।
अपनी राज्य में प्रजाओं का भी बहुत ध्यान रखा था।
राम जी वनवास जाना सहर्ष स्वीकार किया था क्योंकि वे जानते थे कि जीवन में जो कष्ट मिले उसे नियति का निर्णय मानकर सहर्ष स्वीकार कर लेना चाहिए
मर्यादा पुरूषोत्तम राम जी की महिमा सारे संसार में विख्यात है
जय श्री राम जय जय सियाराम
शशिकला व्यास शिल्पी✍️🙏🚩🌹