मर्यादा का चीर / (नवगीत)
घोड़ा चलता
चाल दुलत्ती
औंधे पड़े वज़ीर ।
राजा के भी
कर्म-धर्म की
धुँधली है तस्वीर ।
जल संकट की
व्यापकता से
विचलित होते ऊँट ।
पँक्ति बनाकर
चली चींटियाँ
हाथी करे सलूट ।
अपनी-अपनी
शह-मातों का
लेखा – जोखा
लगा-लगाकर,
चला रहे, ये
खेल अनोखा ।
कर्म-युद्ध को
पीठ दिखाकर
खींचें भाग्य लकीर ।
जोर लगाते
पैदल सैनिक
करते जमकर मार ।
फिर भी इनके
हाथ लगी है
अब तक केवल हार ।
चल निकले हैं
खोटे सिक्के
बाजारों में ।
चुने गए हैं
चोखे सिक्के
दीवारों में ।
पदलोलुपता
खींच रही है
मर्यादा का चीर ।
०००
— ईश्वर दयाल गोस्वामी ।
छिरारी(रहली),सागर
मध्यप्रदेश ।