मर्यादाएँ टूटतीं, भाषा भी अश्लील। मर्यादाएँ टूटतीं, भाषा भी अश्लील। गूँगी बहरी बस्तियाँ, उस पर उड़ते चील।। ✍️अरविन्द त्रिवेदी