मरहम
घाव दिए पहाड़ से, मरहम – जितनी राई
मेरी मोटी खोपड़ी में बात समझ ना आई
बात समझ ना आई ये मरहम बे असर है
और कितना निचोड़ोगे बची कोई कसर है
पांच रुपये का लालच देकर चार गुना बढ़ाएंगे
हम नादान नासमझ कुछ भी ना कह पाएंगे
वीर कुमार जैन ‘अकेला’
घाव दिए पहाड़ से, मरहम – जितनी राई
मेरी मोटी खोपड़ी में बात समझ ना आई
बात समझ ना आई ये मरहम बे असर है
और कितना निचोड़ोगे बची कोई कसर है
पांच रुपये का लालच देकर चार गुना बढ़ाएंगे
हम नादान नासमझ कुछ भी ना कह पाएंगे
वीर कुमार जैन ‘अकेला’