मरहम
कोई दिल का हमको मरहम बताये
मुहोबत के इस रोग से हमको बचाये
जो नजरो मे उनकी ये नजरे मिलाई
तभी से यूं बैठे है ——नींदे उठाये
हुआ नजरो का उनकी ऐसा नशा है
है हम होश मे पर कदम लड़खड़ाये
बैठे है दुनिया की चमक मे लुटे हम
भटक गए है कोई हमे राहे दिखाये
दुनिया को हम छान बैठे है सारी
किसी वैद्य से हम दवा ही न पाये