मरहटा छंद
मरहटा छंद 29 मात्रिक छंद ( मुक्तक)
चार चरण , प्रतिचरण 29 मात्रा ,
क्रमशः 10 -8-11मात्रा पर यति,
पदांत गुरु लघु
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मरहटा छंद मुक्तक
हम सब यह माने , इतना जाने , भारत प्यारा देश |
रहता है पावन , मन को भावन , शुचिमय सब परिवेश |
यह लगता महान , देखे जहान ,शांति और सद्भाव –
रहते है हिलमिल , साफ रखें दिल , भूलें सारे द्वेष |
सुभाष सिंघई
मरहटा छंद
तिथि रही बाईस , दिखे जगदीश , अवध पुरी में राम |
दूर हुए सब गम , भागा है तम , जन-जन करे प्रणाम ||
चहुँ दिशा उल्लास , हटे सब त्रास , सजा अयोध्या धाम |
जागा स्वाभिमान , राम का गान , करता है हर ग्राम ||
सुभाष सिंघई
दिन लगता पावन, है मन भावन, धन्य सुबह है शाम |
जन सब मिल गाते , खुशी मनाते , नगर अयोध्या धाम ||
है प्राण प्रतिष्ठा , प्रभु में निष्ठा , करते उन्हें प्रणाम |
सब मंगल देखें , मन में लेखें , बोले जय श्रीराम ||
सब बीती बातें , काली रातें , नहीं रहीं अब क्रूर |
बैठे अब रघुवर , हँसते तरुवर ,दिव्य भव्य है नूर ||
है भारत प्यारा , लगता न्यारा , जगा सनातन शूर |
जय मथुरा काशी , जो अविनाशी , नहीं दिखे अब दूर ||
सुभाष सिंघई
एम•ए• हिंदी साहित्य, दर्शन शास्त्र ,जतारा (टीकमगढ़) म०प्र०