मरने में अचरज कहाँ ,जीने में आभार (कुंडलिया)
मरने में अचरज कहाँ ,जीने में आभार (कुंडलिया)
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मरने में अचरज कहाँ ,जीने में आभार
दया रोज प्रभु कर रहे ,धन्यवाद सौ बार
धन्यवाद सौ बार , प्रात की स्वर्णिम रेखा
देखी घिरती शाम, चंद्रमा निशि का देखा
कहते रवि कविराय ,आयु दो पूरी करने
प्रभु हों जब सौ साल ,हर्ष से जाएँ मरने
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रचयिता : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99976 15451