मरघट (2)
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प्राण पखेरू क्षण में उड़ गया ,रह गया काया कंचन है।
मुंद गयी अखियाँ, झड़ गयी पखियाँ, लगा वियोगी अंजन है ।
गंगा जल स्नान कराया, ओढ़ ली चुनरिया श्वेत कफन की,
मरघट चला कन्घे पर ,मुख तुलसी ,लगा माथे चंदन है ।
? ? ? ? —लक्ष्मी सिंह ? ☺