मया के खजाना
मया के खजाना
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आज हमर ये छत्तीसगढ़ म,
हमर ही जमाना हावय जी।
प्रेमभाव संग कोठी कोठी,
मया के खजाना हावय जी।
धरती के हरियर छईयाँ म,
हम सब बईठ जुडाथन जी।
चंदन कस माटी ल हम तो,
माथ म तिलक लगाथन जी।
हीरा मोती जइसे खातु,
मिलथे हम ला घुरवा म।
अमरित ले भी बढ़के रइथे,
स्वाद हमर पनपुरवा म।
खुसयाली म रंग रंग के,
गाना अउ बजाना हावय जी।
प्रेमभाव संग कोठी कोठी,
मया के खजाना हावय जी।
पालनहारी ददा हमर हे,
अनपूर्णा महतारी।
छत्तीस भाखा छत्तीस भाजी,
हवय हमर चिन्हारी।
इभ्भा बाटी भौरा गेड़ी,
बचपन के परिपाटी।
गुरतुर भाखा बोली,
जइसे हावय सरग मुहाटी।
पबरित ले भी बढ़के पबरित,
जम्मों डारा पाना हावय जी।
प्रेमभाव संग कोठी कोठी,
मया के खजाना हावय जी।
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डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”