मयस्सर नहीं अदब..
मयस्सर नहीं अदब जहां आदमी के कद को।
बराय छोड़ देना उस श़हर के सरहद को।
जलना मोहाल होता चरागे लौ का पलभर,
जहां हवा न होती या तोड़ी जाती हद को।
✍️”प्यासा
मयस्सर नहीं अदब जहां आदमी के कद को।
बराय छोड़ देना उस श़हर के सरहद को।
जलना मोहाल होता चरागे लौ का पलभर,
जहां हवा न होती या तोड़ी जाती हद को।
✍️”प्यासा