मयखाना
लो मैं ले आया बागों से अंगूर
काले काले और हरे हरे अंगूर
अनाज और गन्ने रस का माड़
अंगूरों साथ दूँगा भूमि में गाड़
तैयार हो जाएगा जब मसाला
तैयार करूँगा घर पर ही हाला
हरे अंगूरों से बनी सफेद आला
काले अंगूर बनाएंगे लाल हाला
तैयार हो जाएगी अंगूरी हाला
पीऊँगा हाला का भरा प्याला
जाऊंगा नशे म़े मैं दुनिया भूल
हो जाएंगी मेरी खुशियाँ कबूल
हाला नशे में मैं हो जाऊंगा चूर
गम जिन्दगी के हो जाएंगे दूर
बन जाऊँगा अधिपति देश का
कष्ट मिट जाएगा परिवेश का
हाला पीकर बन जाऊँ दरवेश
नहीं होगा कोई दुख ना कलेश
हाला ही कादम्बरी मद मदिरा
मय मद्य मधु शराब दारू सुरा
आसव के रंग में ढंग है बदलते
ढंग से ही शराबी के रंग बदलते
साकी के हाथों जब पीए हाला
मय आँखों से है पिलाए प्याला
मय चढती है ऐसे उतरती नहीं
होशोहवास में है आने देती नहीं
होश में जैसे आना चाहता हूँ जब
साकी मय प्याला थमा देती तब
आँखे खुलती हैं होश में जैसे ही
मय आँखों से पिला देती वैसे ही
हुस्न मदिरा होती जब साथ साथ
होशोहवास होता नहीं आसपास
हाला प्याला माशूका का हैं ऐसे
ताउम्र भर का रोगी बनाए जैसे
मद पिलाती जब तवायफ आप
होती कायनात पर कयामत आप
आँखें मटकाती जब बनाती साकी
रहता शरीर में नहीं हैं कुछ बाकी
जुबान नहीं बोलती उसकी नजर
कहती आ जाओ सर्वस्व मेरे मगर
मदिरासेवन जो दोस्तों संग होता
जीवन में गम कोई पास ना होता
दोस्तों की अंजुमन में रंग न्यारा
मद के प्याले बन जाता याराना
आँखे जब हो जाती सुर्ख गुलाबी
हाला रंग दिखाती बनाकर शराबी
मद जब स्वार्थ में पिलाई है जाती
बड़े से बड़ा कारज हल करवाती
होती है जब रंग ये रंग में शवाबी
गधे को बाप पल में कहलावाती
मयखानों में जब होती है मदिरा
पैमानों में पिलाई जाती है मदिरा
शीशों के खानों में सजती संवरती
महकों से अपना मौसम है भरती
भद्रपुरुषों की शान.है बन.जाती
रईसों की पार्टी की रौनक बढाती
पत्नी की आँखों म़े रड़कती सदा
पति जो पिए मय लगती शत्रु सदा
मद्य भार्या को कभी भाती नहीं है
शराबी पति पत्नी को भाता नहीं है
तय सीमा में जो मदिरा को पीता
उच्चवर्गीय भद्रपुरुष है कहलाता
मय पीने की तयसीमा जो तोड़ता
नालायक निकम्मा शराबी कहलाता
प्रेमिल संग मय जो है सांझ करता
मंद मंद मय का आनन्द घूँट भरता
मीठी मीठी अधरों की मंद मुस्कान
बन जाती है मय प्याली संग जान
बढा देती है तन बदन प्रेम अगन
हो जाती हैं अंग प्रत्यंग बहुत जलन
मचल उठती हैं दिल की कामनाएँ
भड़क उठती हैं दबी हुई वासनाएँ
तब रहता है नहीं है मन पर काबू
शराब और.शवाब बना देती बेकाबू
कोई जो आसव को शोकिया पीता
शानोशौकत पद प्रतिष्ठा है दिखाता
जो कोई मय को मजबूरी में पीता
गम दुख दर्द कष्ट भूलाने को पीता
मय पीने पर चढता मद का शरूर
बढ जाता है मद्यप का खून गरूर
कोई मिटाने थकान को रहे पीता
तो कोई गहरी नींद सोने को पीता
जिसका सर्वस्व खो जाए वो पीता
तो कोई सर्वस्व को भूलाने पीता
कोई हवस मिटाने को है रहे पीता
तो कोई लाज बचाने को है पीता
कोई मय पिए किसी के स्वागत म़े
तो को्ई पिए किसी के स्वागत से
कोई पीता है शादी विवाह बहाने से
कोई पिए यारानों के नये बहाने से
यारों शराब कभी भी बुरी नहीं होती
पीने वाले की नीयत खरी नहीं होती
यदि कोई समझता मदिरा का मोल
मदिरा तो होती है बहुमूल्य अनमोल
यदि कोई पिएगा मदिरा तोल तोल
साकी और पीने वाले का होगा मोल
सुखविंद्र सिंह मनसीरत