Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
20 Jan 2021 · 6 min read

मम्मी जग नहीं रही (कहानी)

सुबह के 07ः30 बजे थे भीखू अपने स्कूल जाने की तैयारी करने की वजाय अपने घर के पास वाले थाने में चला गया उसने देखा कि एक पुलिसकर्मी किसी व्यक्ति से कुछ पैसे लेकर कह रहा था भाई साहब अब आप बिल्कुल चिंता मत करो आपका काम हो गया समझो, अब आप निश्चिंत होकर घर बैठ जाइये। ये सब देखकर भीखू अपने घर वापस आया और उसने उस अपनी गुल्लक तोड़ दी, और जिसमें यही कोई 12-13 रूपये निकले होंगे। उन्हें अपनी जेब में डाल कर फिर से उसी थाने में पहुंच गया। जब भीखू वहाँ पहुँचा तो सब कुछ सामान्य था एक सिपाही अपने कन्धे पर बन्दूक टांगे खड़ा था, कुछ लोग किसी अभियुक्त की शिकायत करने के लिए तहरीर दे रहे थे। किसी अभियुक्त को अदालत में प्रस्तुत करने के लिए चालान किया जा रहा था एक पुलिस कर्मियों से भरी गाड़ी कहीं छापा मारने जाने के लिए तैयार खड़ी थी। थाना प्रभारी अपने कक्ष में बैठकर अपने अधिनस्थ पुलिस कर्मियों के पिछले दिन की रिपोर्ट ले रहे थे। ऐसे में भीखू बिना कुछ सोचे समझे सीधे थाना प्रभारी के कक्ष में घुस गया। थाना प्रभारी जी का दरवान जब तक उसके पीछे पीछे थाना प्रभारी के कक्ष में पहुंचा, तब तक भीखू थाना प्रभारी के पास पहुंच चुका था और उसने पहुंचकर थाना प्रभारी के पैर छुए और उनका हाथ खींचकर अपनी गुल्लक से तोड़ कर निकाले 12-13 रूपये उनके हाथ पर रख दिए। ये देखकर थाना प्रभारी सहित उस कक्ष में उपस्थित सभी पुलिसकर्मी आश्चर्य में पड़ गए, कि ये 6 साल का बच्चा क्या कह रहा है।
थाना प्रभारी ने उन पैसों को लेकर अपनी मेज पर एक किनारे रख दिया, और भीखू को अपनी मेज पर सामने बैठाकर पूछा बेटा क्या हो गया और ये पैसे आप मुझे क्यों दे रहे हो।
भीखू, “पुलिस अंकल पुलिस अंकल आज मेरी मम्मी सो कर आज उठ नहीं रही।”
थाना प्रभारी, “अरे बेटा तो इसमें घबराने की क्या बात है तुम्हारी मम्मी आज थोड़ी ज्यादा देर तक सो रही होगी उठ जाएंगी।”
तब भीखू ने उन्हें बताया, “ नहीं पुलिस अंकल मेरी मम्मी कभी इतनी देर तक नहीं सोती। ऐसा कभी नहीं हुआ, लेकिन पता नहीं आज सुबह से उठ नहीं रही है। वैसे तो हर रोज सुबह मम्मी सबसे पहले जागती है, और पूरे घर की साफ सफाई करके मुझे जगाती है, मुझे नहलाती है, मुझे खाना खिलाती है और बहुत प्यार करती है, फिर मुझे स्कूल के लिए तैयार करके स्कूल भेजती है, लेकिन आज मेरी मां उठी नही रही है। जबकि उसे उठाने के लिए पूरे मोहल्ले वाले तक आ गए है, फिर भी नहीं उठ रही है। थोड़ी देर पहले जब मैं आपके पास आया था, तो एक पुलिस अंकल ने किसी से कुछ पैसे लेकर मेरे सामने कहा था, जाओ अब निश्चित हो जाओ तुम्हारा काम हो जाएगा। इसलिए मैं अपनी गुल्लक फोड़कर कुछ पैसे लेकर आया हूं आप ये रख लो और चलकर मेरी मम्मी को जगा दीजिए।
भीखू की बात सुनकर थाना प्रभारी अचंभित हो गए, और भीखू के साथ अपने उन सभी पुलिस साथियों को लेकर उसके घर चले गए। जहां उन्होंने देखा कि भीखू की मम्मी की लाश पड़ी है, और घर के सगे संबंधी व बस्ती के लोग शोक व्यक्त कर रहे थे। जिसे देखकर थाना प्रभारी दंग रह गए भीखू बार बार थाना प्रभारी से कह रहा था पुलिस अंकल जी प्लीज मेरी मम्मी को जगा दो ना।
फिर भीखू अपने किसी संबंधी के पास गया और 2 रूपसये और मांग कर ले आया, फिर थाना प्रभारी के हाथ पर रखते हुए बोला, “पुलिस अंकल जी 2 रूपये और लेकर मेरी मां को जगा दो।”
थाना प्रभारी स्तब्ध रह गए, उसने वहां मौजूद लोगों से जानने की कोशिश की, कि यह सब कैसे हुआ। लेकिन वहां किसी को कुछ नहीं पता था, थाना प्रभारी के साथ आए अन्य पुलिसकर्मियों ने भीकू के घर के अंदर जाकर तलाशी ली, तो उन्हें घर के अंदर एक के जहर की शीशी मिली, और उस जहर की शीशी से दबी हुई एक चिट्ठी भी मिली। जिसे तलाशी कर रहे पुलिसकर्मियों ने थाना प्रभारी को लाकर दे दिया। थाना प्रभारी ने जब उस चिट्ठी को पढ़ा तो उसे पढ़कर हैरान रह गया, उनकी आत्मा कांप गई उसमें लिखा था:-

मेरे प्यारे बच्चे भीखू मुझे नहीं मालूम कि तुम्हारे हाथ यह चिट्ठी कब लगेगी। लेकिन मेरे बच्चे मैं तुमसे माफी मांग रही हूं, इसलिए कि मैं तुम्हें अबोध नादान अवस्था में छोड़कर हमेशा के लिए जा रही हूं। लेकिन मेरे बच्चे मैं मजबूर हूं तेरी मां होने के अलावा मैं एक स्त्री हूं मेरा भी एक स्वाभिमान है जिसने मुझे ऐसा करने के लिए मजबूर कर दिया। तुम्हारे पापा रोज शाम को शराब पीकर मुझे मारते हैं, पीटते हैं, मेरा शारीरिक शोषण करते हैं, जिससे मुझे बहुत दर्द होता है, मुझे बहुत पीड़ा होती है। मेरे बच्चे अगर तुम्हारे लिए यह सब सहती भी रहूं तो कब तक। मैं जानती हूं कि सब लोग कहते हैं, कि स्त्री बहुत मजबूत होती है, लेकिन उस स्त्री की भी एक सीमा होती है जुल्म सहने की, किसी की मारपीट सहने की, गाली गलौज सुनने की। आज मेरी उस सहनशीलता का बांध टूट गया। इसलिए मेरे बच्चे मैं तुझे छोड़कर इस दुनिया से हमेशा हमेशा के लिए जा रही हूं। हो सके तो मुझे माफ कर देना। और तुम मुझे एक वादा करो, कि जीवन में कभी अपने पापा की तरह नहीं बनोगे, हमेशा नारियों का सम्मान करोगे। बहुत बहुत प्यार और आशीर्वाद के साथ तुम्हारी मां।

उस पत्र में सबसे नीचे नोट करके एक बात लिखी थी, कि यह पत्र अभी मेरे मरने के बाद जिस किसी को भी मिले, वह संभाल कर रख ले और जब मेरा बेटा भीखू बड़ा हो जाए, समझदार हो जाए, तब उसको यह पत्र दे दिया जाए। आपकी महान कृपा होगी।

उस पत्र को पढ़कर थाना प्रभारी की आंखें भर आई। अचानक उन्होंने महसूस किया कि कोई बार-बार उनका हाथ खींच रहा था। उन्होंने जब देखा तो भीखू था। वो नीचे बैठकर भीखू को देखने लगे, उसकी आंखों में कोई आंसू, कोई गम नहीं था। वह तो बस उनकी ओर यह उम्मीद लगा कर देख रहा था कि पुलिस अंकल को मैंने अपनी गुल्लक फोड़ कर पैसे दे दिए हैं तो वो अभी मेरी मम्मी को जगा देंगे। और बार-बार उस थाना प्रभारी से कह रहा था, पुलिस अंकल पुलिस अंकल मेरी मम्मी को जगा दो ना प्लीज। लेकिन उस थाना प्रभारी के पास भीखू की बात का कोई जवाब नहीं था। वह खुद उस परिस्थिति को और भीखू की बात सुनकर स्तब्ध रह गया था। उन्होंने भीखू से केवल इतना कहा, “बेटा आपकी मम्मी भगवान के घर आपके लिए चीज लेने गई हैं और दो-चार दिन बाद लौट कर आ जाएंगी।”
थोड़ी देर बाद उस थाना प्रभारी ने अपने अन्य पुलिसकर्मी साथियों के साथ भीखू की मम्मी का अंतिम संस्कार करवाया और अंतिम संस्कार के बाद थाने में आ गए। उस दिन भीखू की मां की मौत का सन्नाटा उस थाने में भी पसर गया था। भीखू की मां के अंतिम संस्कार में शामिल हुए पुलिसकर्मियों के चेहरों पर मायूसी की एक चादर छाई हुई थी। उन पुलिसकर्मियों में से कोई भी पुलिसकर्मी थाने में लगे उस दर्पण के सम्मुख जाने की कोशिश भी नहीं कर रहा था, जिसमें मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा होता है क्या मेरी वर्दी ठीक है। क्योंकि उस दिन वह दर्पण सारे पुलिसकर्मियों से यह चीख-चीख कर यह पूछ रहा था, “क्या तुम्हारी आत्मा शुद्ध है, ठीक है, थाना प्रभारी भी अपने चेंबर में बैठे उन सिक्कों को देख रहे थे जो सुबह 7रू30 बजे भीखू ने लाकर उनके हाथ पर रखे थे और बड़ी आशा के साथ उसने कहा था, पुलिस अंकल आप जल्दी से चलकर मेरी मम्मी को जगा दो प्लीज वो उठ नहीं रही है। उस दिन उनकी आत्मा अंदर ही अंदर उनको कचोट रही थी। क्योंकि उस दिन उनकी आत्मा ने उनको इंसान स्वीकार करने से मना कर दिया था। वे खुद को एक हारा हुआ महसूस कर रहे थे। वे उस दिन अंदर ही अंदर खुद को ही कोस रहे थे। उनकी मेज पर रखे हुए सिक्के उनका सिर बार-बार शर्म से नीचे झुका रहे थे। जिनके सामने थाना प्रभारी कुछ बोल नहीं पा रहा थे आत्मग्लानि से भरकर बार-बार उन्हीं सिक्कों को देखे जा रहे थे। जिसमें भीखू का मासूम चेहरा दिखाई दे रहा था और बार-बार वे सिक्के उस थाना प्रभारी से कह रहे थे। अंकल जी ये पैसे लेकर मुझसे एक बार कह दो भीखू अब चिंता मत करो मैं तुम्हारी मम्मी को जगा दूंगा और मेरी मम्मी को जगा दो न प्लीज। आज पता नहीं क्यों मेरी मम्मी जग नहीं रही।

लेखक
मोहित शर्मा स्वतंत्र गंगाधर
दिनांक 30 अप्रैल 2020

Language: Hindi
1 Comment · 679 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

सब ठीक है
सब ठीक है
पूर्वार्थ
नए साल तुम ऐसे आओ!
नए साल तुम ऐसे आओ!
गौ नंदिनी डॉ विमला महरिया मौज
चेहरा
चेहरा
MEENU SHARMA
3620.💐 *पूर्णिका* 💐
3620.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
संवेदना
संवेदना
Kanchan verma
ग़ज़ल
ग़ज़ल
आर.एस. 'प्रीतम'
काहे की विजयदशमी
काहे की विजयदशमी
Satish Srijan
हीरा बेन का लाल
हीरा बेन का लाल
Dr. P.C. Bisen
बाबा भीमराव अम्बेडकर परिनिर्वाण दिवस
बाबा भीमराव अम्बेडकर परिनिर्वाण दिवस
Buddha Prakash
प्रलयंकारी कोरोना
प्रलयंकारी कोरोना
Shriyansh Gupta
"पॉजिटिविटी"
Dr. Kishan tandon kranti
पहला कदम
पहला कदम
प्रकाश जुयाल 'मुकेश'
बिन पैसों नहीं कुछ भी, यहाँ कद्र इंसान की
बिन पैसों नहीं कुछ भी, यहाँ कद्र इंसान की
gurudeenverma198
दिल है मेरा बिहार में
दिल है मेरा बिहार में
श्रीहर्ष आचार्य
केवल
केवल
Shweta Soni
अन्तर्मन में अंत का,
अन्तर्मन में अंत का,
sushil sarna
छंदमुक्त काव्य?
छंदमुक्त काव्य?
Rambali Mishra
हिन्दी हाइकु- शुभ दिपावली
हिन्दी हाइकु- शुभ दिपावली
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
*जीने न दें दो नीले नयन*
*जीने न दें दो नीले नयन*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
गलतियां हमारी ही हुआ करती थी जनाब
गलतियां हमारी ही हुआ करती थी जनाब
रुचि शर्मा
मन  बंजारा  लौट  चला  है, देखी  दुनियादारी।
मन बंजारा लौट चला है, देखी दुनियादारी।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
Dr Arun Kumar shastri
Dr Arun Kumar shastri
DR ARUN KUMAR SHASTRI
*माँ शारदे वन्दना
*माँ शारदे वन्दना
संजय कुमार संजू
*मानव शरीर*
*मानव शरीर*
Dushyant Kumar
अहंकार
अहंकार
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
महान लोग साधारण लोग होते हैं ।
महान लोग साधारण लोग होते हैं ।
P S Dhami
आओ घर चलें
आओ घर चलें
Shekhar Chandra Mitra
तुझसे लिपटी बेड़ियां
तुझसे लिपटी बेड़ियां
Sonam Puneet Dubey
सच समझने में चूका तंत्र सारा
सच समझने में चूका तंत्र सारा
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
विरह व्यथा
विरह व्यथा
डॉ राजेंद्र सिंह स्वच्छंद
Loading...