मन
उलझन में है मन बात मन की कहने दो
रोको मत तुम आज कि लहरों में बहने दो
चाहे दो इल्ज़ाम चाहे लाख सज़ा दो
मन को लेकिन आज फ़क़त मन की करने दो
सब कुछ होगा साफ नया सूरज निकलेगा
आज मगर तुम रजनी का साया सहने दो
वापस आने वाली कोई बची नहीं अब राह
आ जाऊंगा राह कोई फिर से बनने दो
कल न रहूंगा आज मुझे जी भर के कोसो
मुझको भी जज़्बात ज़रा दिल के सुनने दो
बेगानो का शोर ‘अजय’ पहलू में है अब
मुझको अपने आस पास तन्हा रहने दो
अजय मिश्र