मन
अनमना-सा हो गया है,मन न जाने क्यूँ
आज फिर से खो गया है, मन न जाने क्यूँ
धूप की चादर पहनकर,दोपहर के वक्त
छत पे जा के सो गया है,मन न जाने क्यूँ
अनमना-सा हो गया है,मन न जाने क्यूँ
आज फिर से खो गया है, मन न जाने क्यूँ
धूप की चादर पहनकर,दोपहर के वक्त
छत पे जा के सो गया है,मन न जाने क्यूँ