मन
हो हृदय पुलकित
मन तुम कुछ ऐसा करना
खिले किसी के मुख पर मुस्कान
मन तुम कुछ ऐसा करना
शूलो से सुज्जित राह हो जो किसी की
सुमन की तुम बोझार करना
हर लेना सब चिन्ता
मन तुम कुछ ऐसा करना
परसुराम तुम्हारी ही गति से
विचरण करते थे
पल भर में कोसो कोस चलते थे
तुम ने लोगो के भावो को देखा है
तुम ने लोगो के स्वभावो को देखा है
तुम ने लोगो के अभावो को देखा है
तुम ने लोगो के प्रभावो को देखा है
तुम देखा है अन्दर भी
तुम ने देखा है बाहर भी
किसी के चहरे का भाव भी तुम ही बने
तुम ने ही कवि को दिया कल्पनाओं का शहर
तुम ने ही दिया नीरस से जीवन मे रस
हो हृदय पुलकित
मन तुम कुछ ऐसा करना
सुशील मिश्रा (क्षितिज राज )