मन
मन को टटोला मन ही मन में ,
अंतर्मन के मन मंदिर में।
मन न समझे मन की बात,
फिर कौन समझे ये जज्बात।
मन ही मन में मचा द्वंद है,
मन में बचा नहीं मकरंद है ।
नीरस मन की व्यथा अपार,
मन को साधे बरम्बार ।
मन की महिमा अपरम्पार,
क्षण-क्षण बदले रंग हजार ।
खुशहाली में उछले मन,
गम में हो जाता है उदास मन ।
मन पर काबू जो करे,
मोह माया से हो जाए परे ।
जितना मिले सुख शांति से,
उतने में ही मन संतुष्ट करो ।
सच्ची बात समझ ले अखिल,
क्षण भंगुर संसार ।
मन को कर ले काबू में,
जितनी चादर उतने पैर पसार ।।
डां. अखिलेश बघेल “अखिल”
दतिया (म.प्र.)