मन
कभी-कभी यूं लगता है जैसे,
कुछ अधूरा सा हूं मैं।
इस गुलिस्तां-ए जहां में,
पंछियों की तरह उड़ता फिर रहा।।
कभी इस डगर, तो कभी उस डगर,
अनजान से, सफ़र पर हूं निकल पड़ा।
नहीं जानता मैं, ना ही है मुझे पता,
क्या मेरी मंजिल है,और क्या मेरा रास्ता।।।।
कभी-कभी यूं लगता है जैसे,
कुछ अधूरा सा हूं मैं।
इस गुलिस्तां-ए जहां में,
पंछियों की तरह उड़ता फिर रहा।।
कभी इस डगर, तो कभी उस डगर,
अनजान से, सफ़र पर हूं निकल पड़ा।
नहीं जानता मैं, ना ही है मुझे पता,
क्या मेरी मंजिल है,और क्या मेरा रास्ता।।।।