मन
मन तूं क्यों इतना विचलित हैं,
मन तूं क्यों राह भटकता हैं।।
अंगारों पर चलते चलते तूं पुष्पों को ढूंढता हैं,
दुनिया की तूं चिंता न कर ये दुनिया इक बंजारा हैं।।
ऐ मन पग पग पर तुझे मिलेगा,
चारों तरफ अंधियारा हैं।।
ऐ मन आंसुओं को पीकर तो
तुझे खुशियों को दिखाना हैं।।
डर को पीछे छोड़कर
तुझे हिम्मत को जुटाना हैं।।
मुसीबतों को पार करके,
लक्ष्य को पा जाना है।।
अंधेरे के पग पर ,
तुझे प्रकाश ले के आना हैं।।
ऐ मन तुझको ,
अपने अंदर विश्वास को जगाना हैं।।
गर्दिश को दबाकर,
तुझे किस्मत को चमकाना हैं।।
ऐ मन तूं क्यों इतना विचलित है,
तुझे आगे बढ़ते जाना हैं।।
कृति भाटिया।।