“मन”
मन का मन पर विश्वास करना हो गया मुश्किल,
मन का पाश ,मन का भ्रम जिससे निकलना हो गया मुश्किल।
मन ही ना जाने मन क्यों बैचेन उसको समझना हो गया मुश्किल,
मन की बाते , मन की उलझने उनको सुलझाना हो गया मुश्किल।
मन की प्रीत ,मन की रीत उसको बहलाना हो गया मुश्किल,
मन की तंरगे , मन की उंमगे काबू कर पाना हो गया मुश्किल।
#सरिता सृजना