मन होता है कुछ बांटें!
मन होता है कुछ बांटें
वो जलती-सुलगी रातें
कुछ अनबुझ गहरी घातें
जब सपने भूखे रहते..
करते रोटी की बातें..
वो कदम-कदम की चोटें
मौसम की अविचल घातें
वो बस अभाव की चिंता
वो झूठ-मूठ के वादें
जब बचपन युवा रहा था
जब मरना सरल लगा था
वो संघर्षों की यादें..
तुम बोलो किससे बांटे..
वो अनबुझ काली रातें?
स्वरचित
रश्मि लहर