मन रे क्यों तू तड़पे इतना, कोई जान ना पायो रे
मेरी कलम से…
आनन्द कुमार
मन रे क्यों तूं तड़पे इतना
क्या है तेरी मजबूरी
चाह किसका पाले हो इतना
क्यों है इतना जरुरी
दिल में कशक लिए हो किसका
तन को क्यों तडपायो रे
आँख में दर्द ना जाने कैसी
कुछ भी समझ ना आयो रे
प्रीत मिलन की टिस है तेरी
या प्रेम आग बतायो रे
मन रे क्यों तू तड़पे इतना
कोई जान ना पायो रे