मन रेगिस्तान
18-10-2018
मन ही जब
भावों का रेगिस्तान
सब कुछ सूखा
नैनो में नीर नहीं
रेत के निशान
भावनाएं भस्म
गम के सूरज में
रिश्तों के भी
पाँवों में जलन
अश्क नीर नही
चमकती रेत
तपता मन
तपती रेत में
एक कदम
चलना भी कठिन
गला सूखता है
मगर दूर दूर तक
पानी नहीं
चाँद की कोशिश
रोज निकलकर
अपनी शीतलता से
जलन हरने की
मगर पौ फटते ही
फिर खेल शुरू
जलन का, तड़पने का
आग से खेलने का
अक्सर ज़िन्दगी
फुसफुसाती है कानों में
सींच दो
इस रेगिस्तान को
प्रेम की फुहार से
बो दो किसी एक
खुशी का बीज
क्या पता अंकुरित होकर
बने खुशी का पेड़
हरा भरा होकर
इतने फल फूल दे
मिट जाए ये रेगिस्तान
भावों में खिल जाए
हरियाली
रेत में से फूटें
खुशियों के झरने
रेगिस्तान बन जाये
महकता उपवन
ज़िन्दगी हो जाये
फिर से सावन
17-10-2018
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद