मन मोहना
डॉ ० अरुण कुमार शास्त्री एक ? अबोध बालक
अरुण अतृप्त
? मन मोहना ?
ओहरी सखी जब कोयल गाये
जियरा मोरा रस बरसाये
तोहरी याद सताये
घन घन घनघोर घटाएं
ओहरी सखी जब….. कोयल गाये
बिजुरी चमके हिय मोरा लरजे
डर डर डर डर जा…..ऊँ
पीहू पीहू की टेर लगाऊं
कोई ठौर न पाऊँ
ओहरी सखी जब…. कोयल गाये
अमवा पक गए , बौर न सूखे
हरियाली के दृश्य अनूठे
कल कल बहती नदिया कहती
पी को भी……. सँग लाऊँ
ओहरी सखी जब …..कोयल गाये
लाज का घूँघट
रह रह सरके
थक गये नयना
राह को तकते
देखूँ और ….शर्माऊँ
कोई सखी न …संगी साथी
जिसको जाये बताऊँ
ओहरी सखी जब …..कोयल गाये
आन मिलो अबकी सावन में
दरसन दे दो मोहरे आँगन में
आँचल को लहरा… ऊँ
चुपके चुपके करूँ इशारा
इसी बहाने मन की बात सुनाऊँ
ओहरी सखी जब …..कोयल गाये
मन मोहन हो मेरे मन के
निस दिन गिनती तेरे मनके
दूर देस तुम जाये बसे हो
सौतन के सँग नैना लड़े हौं
टीस हमारी शंकित होकर
क्या क्या सोचे जाये
ओहरी सखी जब …..कोयल गाये
ओहरी सखी जब कोयल गाये
जियरा मोरा रस बरसाये
तोहरी याद सताये
घन घन घनघोर घटाएं
ओहरी सखी जब …..कोयल गाये