मन मेऱे हार न मान
मन मेऱे हार न मान
न मिली मंज़ील तो क्या
खुद को गुनहगार न मान ।
सब कुछ भूल जा , सबक याद रख
दिल में कसक को आबाद रख
तुमको बढ़ना है, इतना ले जान
मन मेऱे हार न मान
खुद को गुनहगार न मान ।
राही को ही है मंज़ील का एहसास
जो चले ही नहीं , कुछ न उनके पास
छुट गया का शोक क्यों नादान
मन मेऱे हार न मान
न मिली मंज़ील तो क्या
खुद को गुनहगार न मान ।