मन मेरे बासंती हो जा
सुबह सुनहरी शाम गुलाबी, पहर-पहर महकाये हैं।
मन मेरे बासन्ती हो जा, ,,,, ऋतुराज अब आये हैं।।
नर्म-नर्म ठंडी और गर्मी, ,,,,, धूप-छांव भी कोमल है।
शाक वृक्ष पर नई शाखाएं, कोमल-कोमल कोपल है।
शीतल मंद पवन का झोंका, लेकर वन इतराये हैं।।
मन मेरे बासन्ती हो जा, ,,,, ऋतुराज अब आये हैं।।
टेंसू अमुआ महुआ की डाली जो मद में झूल रही।
गेहूँ की बाली खेतों में, ,,,,, सरसों पीली फूल रही।
कली-कली खिल पुष्प हो गई, बाग-बाग मुस्काये हैं।
मन मेरे बासन्ती हो जा, ,,,, ऋतुराज अब आये हैं।।
भौरों का गुंजन, कोयल की कूक हिया में जोश भरे।
चंदन मेंहदी हल्दी की खुशबू तन-मन मदहोश करे।
बासन्ती श्रृंगार धरा को दुल्हन सा कर जाये हैं।।
मन मेरे बासन्ती हो जा, ,,,, ऋतुराज अब आये हैं।।
संतोष बरमैया जय