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23 Nov 2016 · 1 min read

मन मेरे तू, सावन-सा बन…

मन मेरे तू सावन-सा बन !
मृदुल मधुर भावों से अपने,
कर दे जग को पावन-पावन।
मन मेरे तू, सावन-सा बन !

मिट जाए चाहे तेरी हस्ती।
हरी-भरी हो जग की बस्ती।
खिल उठें घर-उपवन-कानन।
मन मेरे तू, सावन-सा बन !

तपते आतप से कितने प्राणी !
उन्हें सुना राहत की वाणी।
भर जाए खुशी से दामन-दामन,
मन मेरे तू, सावन-सा बन !

जो पल-पल तेरी राह निहारें।
मिल तू उनसे बाँह पसारे।
मुरझे न कोई आस भरा मन।
मन मेरे तू, सावन-सा बन !

छाले पड़े जिनके पाँव में।
तेरे आँचल की शीत छाँव में,
मिले उन्हें माँ-सा अपनापन।
मन मेरे तू, सावन-सा बन !

स्नेह कण तूने किये जो संचित।
रख मत उनसे जग को वंचित।
बरसा उन्हें दे आँगन-आँगन।
मन मेरे तू, सावन-सा बन !

~ डॉ0 सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ0प्र0 )

Language: Hindi
1 Like · 523 Views
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