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12 May 2023 · 1 min read

***मन में बहती रहे प्रेम की गंगा****

***मन में बहती रहे प्रेम की गंगा****
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मन में बहती रहे सदा प्रेम की गंगा।
तनबदन चुस्त तंदरुस्त और हो चंगा।

चिंगारी भड़के ही शोला बनती जाती,
जाति संप्रदायी धार्मिक न हो दंगा।

भूख गरीबी बेकारी नसीबों से परे हो,
बिना कपड़ों के कोई तन न हो नंगा।

खुद उलझा किसी को कैसे सुलझाए,
उलझन में फिरता रहे बुद्धि का कंघा।

एक कदम भी चलना हो जी मुश्किल,
कोई साथी मिले न हमें कभी बेढंगा।

जुबां में नरमी हृदय में रहम भरा हो,
जीवन में किसी से न हो कोई पंगा।

क्रोध अग्नि झुलसती मन मनसीरत,
प्रेम रंग में हर कोई हर दम हो रंगा।
*****************************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

Language: Hindi
170 Views
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