मन में उठे अरमानों को संजोएं !
मन में उठे अरमानों को संजोएं !
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जब मन भरमाता है तो रुक जाता हूॅं !
फिर थोड़ा हिम्मत करके चल पड़ता हूॅं !
रुकने, चलने का सिलसिला जारी रहता !
कभी-कभी तो ख़्वाबों में ही खो जाता हूॅं !!
मन तो मन ही है कौन इसे समझाए !
यह तो अपनी धुन में ही चलता जाए !
कभी तो ये ख्वाबों में ही हॅंसाता जाए !
और कभी हक़ीक़त में ही दु:ख पहुॅंचाए !!
फिर भी मन की बातें तो सुननी ही पड़ेगी !
मन से ही सारी इच्छाएं जो संचालित होती !
भावनाओं के समुंदर में ही डुबकी लगाकर….
किसी कवि की रचनाधर्मिता भी जागृत होती !!
मन ही मन , मन में उठे अरमानों को संजोएं !
ऊंचाईयों से गहराईयों तक संग खुद को डुबोएं !
कुछ ख़ास मिल जाए तो उसे ही लेखनी में पिरोएं !
फिर लेखनी की ओर सबका ध्यान आकृष्ट कराएं !!
स्वरचित एवं मौलिक ।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 26-07-2021.
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