मन मसोस
मन मसोस (लघुकथा)
विद्यालय में स्वतंत्रता दिवस की तैयारी जोर-शोर से चल रही थी।
मनीषा – मैडम जी स्वतंत्रता दिवस पर मैं भी गीत गाऊंगी।
मैडम – पहले मुझे गीत सुनाओ।
मनीषा – “रविदास पिता दियां धीयां भीमराव दे वांगु पढणगियां”
मैडम – यह गीत तो कार्यक्रम में नहीं सुनाया जा सकता। कोई और गीत है तो बता।
मनीषा – मैडम जी मेरी इसी गीत की तैयारी है। मैं यही गीत सुना सकती हूॅं।
मैडम – यह तो नहीं होगा।
मनीषा – यह क्यों नहीं?
मैडम – क्योंकि यह जातिवादी गीत है।
मनीषा – लेकिन मैडम जी जसप्रीत ने भी तो “जट्टां दी ट्राली” गीत पर तैयारी कर रखी है। उस गीत में जाति का चर्चा है। जबकि मेरा गीत तो शिक्षाप्रद है।
मैडम – अच्छा अब तू तय करेगी। कार्यक्रम में कौन सा गीत सुनाया जाए। कौन सा नहीं।
मैडम की जली-कटी सुनकर मनीषा मन-मसोस कर बैठ गई।
-विनोद सिल्ला