मन भी व्याकुल तन भी व्याकुल
की मन भी व्याकुल
तन भी व्याकुल
व्याकुल लगे सारा संसार
की जीरो से अम्बर तक
नब्बे से सौ नंबर तक
की नीली नीली आंखों समुंदर के अंदर तक
क्षितिज से अम्बर तक
नर हो या नारी सब के जी के अंदर तक
व्याकुलता है छाही है
प्रथ्वी से अम्बर तक
धरती से समुंदर तक
हर जीव के अंदर तक
व्याकुलता ही व्याकुलता है
सृष्टि की दृष्टि के अंदर तक
प्रथ्वी से समुंदर तक