मन पर रावण-राज
मन पर रावण-राज
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दशानन जलाते रहे,मन में तुच्छ विचार।
मन का रावण मारिए,खर्च बचे हर बार।।
अहंकार जब तक रहे,मन में डेरा डाल।
रावण जीवित मानिए,हँसता लिए उबाल।।
दया धर्म को सीखिए,बनके तुम इंसान।
अपनी-अपनी सोच है,तब तक हो नादान।।
मिटा-मिटा पर तुम थके,मिटा न मन का मैल।
स्वार्थ-चक्कर काटते,ज्यों कोल्हू का बैल।।
तुम रावण पर हँस रहे,रावण तुमको देख।
जिसका मन पर राज है,मिटे नहीं उल्लेख।।
–आर.एस.प्रीतम
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