” मन पगला पगला सा ” !!
बदली बदली सी बयार है ,
है मिज़ाज़ बदला सा !!
तोल रहे हम सुख दुख अपने ,
देख रहे हैं सौदागर !
खुशियाँ कहाँ मिलेगीं हमको ,
हमें चाहिये झोलाभर !
रोज़ हो रहे उत्सव , मेले ,
मन पगला पगला सा !!
नित बखान है सौगातों का ,
जो पाये वह धन्य हुआ !
जिसके हाथ लगा ना कुछ भी ,
उसका मन मालिन्य हुआ !
सबके हित में जुटा रहा जो ,
है सँभला सँभला सा !!
होता है खिलवाड़ यहां पर
रोज़ भावना दम तोड़े !
सत्ता का है खेल निराला ,
अश्रु संग हित को जोड़े !
उम्मीदें हम सभी ढो रहे ,
परिवर्तन धुंधला सा !!
परिवर्तन जो हुए दिखे ना ,
आँखों पर पट्टी बांधी !
जो पाया वह छूट सके है ,
रोके ना , झंझड़ ,आँधी !
अब भविष्य फिर दाँव लगे ना ,
है विचार गंदला सा !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )