मन – पंछी
दिन सूना
भीगी रात
बयार निगोड़ी
करे आघात
मन का पंछी
पंचम कैसे गाए
सिले अधर
पथराई बात
देखो न
फिर होने लगी
बिन जलधर
कैसी बरसात
तृण भीगे
भीगे पात
कैसी निष्ठुर
मीठी रात
अशोक सोनी
भिलाई ।
दिन सूना
भीगी रात
बयार निगोड़ी
करे आघात
मन का पंछी
पंचम कैसे गाए
सिले अधर
पथराई बात
देखो न
फिर होने लगी
बिन जलधर
कैसी बरसात
तृण भीगे
भीगे पात
कैसी निष्ठुर
मीठी रात
अशोक सोनी
भिलाई ।