मन नहीं होता
मन नहीं होता अब तुमसे बात करने का
बिना बात कसूरवार बन आह भरने का
क्यों बनती रहूं तेरे सामने बार बार बेचारी
अपने दम पर आगे बढ़ने की, क्यों न करूं तैयारी
बार बार क्यों तोड़ा जाये मेरा आत्मसम्मान
तू भी सिर्फ इंसान है ,नहीं हो भगवान।
मुफ्त की नौकर बन क्यों, बनू घर की रानी
बदलूगी खुद को , बनाऊंगी नयी कहानी।
सुरिंदर कौर