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1 May 2018 · 1 min read

मन दीप

बंधन के दीप

दीप जलाओ घर में अपने, है बहुत अंधेरा

बाती ये बंधन की छोटी, है अभी सवेरा।

कितने कच्चे प्यार के धागे

बात बात पर टूटे

कैसा ये अनमोल रिश्ता

सुन लोरी सो जाते।।

…..दीप जलाओ घर में अपने, है बहुत अंधेरा

बंधन से बंधन की बातें

अंतस की हैं सांसें

बंधन हैं स्वप्न सरीखे

उड़-उड़ जाएं रातें….

……. …..दीप जलाओ घर में अपने,है बहुत अंधेरा

बंधन से है अंक मां का

पिता प्रेम की दरिया

बंधन है ममता का आंचल

खिल-खिल जाए बहियां…

…. …..दीप जलाओ घर में अपने,है बहुत अंधेरा

बंधन से रिश्तों के मेले।

घर-घर की है पूंजी

बाबुल अंगना उठे डोली

जग की यह कुंजी।।

…..दीप जलाओ घर में अपने, है बहुत अंधेरा

बंधन में बंधक हैं सारे

नेह-जन्म के किस्से

आशाओं की गठरी लादे

मन-मन ढूंढें सच्चे…

…..दीप जलाओ घर में अपने, है बहुत अंधेरा

बंधन है प्यार का मोती

जुगनू सी है माया

रो रही है घर में अम्मा और

उनकी थिरकती काया…।।

…. …..दीप जलाओ घर में अपने, है बहुत अंधेरा

कैसा बंधन, कौन सा बंधन

घर-घर की हैं बातें

अर्थ खो रहे रिश्ते-नाते

अलग-थलक हैं रातें।।

….. दीप जलाओ घर में अपने, बहुत अंधेरा है

छोड़ो दूरी करो मोहब्बत

यही जग की रीति

थामो अपनी घर की बगिया

फूलों से है रीति

… दीप जलाओ घर में अपने, बहुत अंधेरा है

-सूर्यकांत द्विवेदी

Language: Hindi
496 Views
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