” मन टेढ़ा चलता है ” !!
हम तुम सारे दौड़ा करते ,
चैन किसे मिलता है !
समय यहाँ पर भरे कुलाँचे ,
पग पग पर छलता है !!
कुछ पाने की सदा लालसा ,
मन में जागा करती !
अभिलाषाएं संभल संभल कर ,
इसीलिये डग भरती !
उम्र तो बस बदले पड़ाव है ,
जैसे दिन ढलता है !!
जन जीवन क्या और नियति भी ,
नित को दौड़ लगाते !
जितना पाओ उतना थोड़ा ,
ज्यादा से न अघाते !
तन थक जाये , मन दौड़े है ,
अवसर कब टलता है !!
बचपन , यौवन और बुढापा ,
हाय हाय कर बीते !
जाने कितने प्रश्न न सुलझे ,
सदा रहे मनचीते !
क्या हासिल ना कर पाये बस ,
वही हमें खलता है !!
धन , वैभव , पद , कुर्सी चाहो ,
आन , बान और शान !
धर्म , सभ्यता और संस्कृति ,
फैशन , मद और मान !
राह रुके ना राही रुकता ,
मन टेढ़ा चलता है !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )