मन चिंतन मनन करता है।
मनुष्य मन चिंतन मनन करता है।
जाने ये कहां कहां भ्रमण करता है।।1।।
ईश्वर गुण अवगुण सभी देखता है।
सुर असुर सबको शरण में लेता है।।2।।
मानव जैसा भी कर्म तू करता है।
तुझको उसका फल भी मिलता है।।3।।
मेरा प्रेम तुमको बुलाता रहता है।
यह जीवन तुम बिन ना कटता है।।4।।
पीडा में हो इसान कहां हंसता है।
पर कटे फिर पक्षी कहां उड़ता है।।5।।
मानव इतना निराश क्यों होता है।
सूरज प्रतिदिन ही आके उगता है।।6।।
मां बाप की सेवा क्यूं ना करता है।
मानव तू पत्थर की पूजा करता है।।7।।
अब कोई ना किसी से यूं डरता है।
मर्यादा का जीवन कहां दिखता है।।8।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ