मन खुद डटज्यागा रचना व्याख्या सहित (कली -२)
मन खुद डटज्यागा रचना व्याख्या सहित (कली -२)
२-क्षुधा लगै ना फिर ऐसी मांग भीख ले,
प्यास ना सतावै चूस ज्ञान रूपी ईंख ले,
चार साधन ज्ञान के हैं गुरुजी से सीख ले,
प्रथम विवेक और द्वितिय वैराग देख,
सम के स्वरुप षष्ठ अष्ठ याम जाग देख,
चतुर्थ मुमुक्षुता है प्रेम बीच पाग देख,
लाग देख श्रद्धा समाधान मैं,दम उपराम तितिक्षा।
व्याख्या–कवि कहता है कि अगर तुझे भिक्षा मांगनी है तो ज्ञान रूपी भिक्षा माँग जिससे तेरी भूख की तृप्ति हो और फिर से भूख ना लगे,और ज्ञान रूपी गन्ने का रस पी जिससे तुझे जीवन भर प्यास नहीं लगेगी।
हे मनुष्य ज्ञान के चार स्त्रोत हैं जो तुम्हें विस्तृत रुप से तुम्हारे गुरु जी ही बता सकते हैं।
पहला ज्ञान का साधन है तुम्हारी बुद्धि,दूसरा साधन है सन्यास,जिसके लिए एकान्त जगह में बैठकर तमाम सांसारिक मोह ममता का त्याग करना पड़ता है।
तृतीय हैं ज्ञान की छह सम्पदाएं (सम,दम,श्रद्धा,उपराम,समाधान,तितिक्षा) जिसके लिए तुम्हे आठ पहर जागना पड़ेगा।
चतुर्थ मुमुक्षुता (मोक्ष प्राप्ति की अभिलाषा) है जिसके लिए प्रेम रूपी सागर में डूबकी लगानी पड़ेगी।
इसलिए तुम स्वंय की इंद्रीयों पर काबू पाकर,विषयों के प्रति आसक्ति त्याग कर,सभी प्रकार के द्वंद सहन करके,उस सत्य से प्रगाढ़ प्रेम कर उसकी साधना में लग जा।