मन क्या है?
मन क्या है?
एक कमल है,,
जो खिलता है कीचड़ में।
जो शोभित राजा के सिर पर,,
तो अभिमानी हो जाता है।
वेद-धर्म और न्याय सभी को,,
अहंकार में खो जाता है।।
मन क्या है?
एक कमल है,,
जो खिलता है कीचड़ में।
जो आता माली के कर में,,
तो कर-शैय्या पर सो जाता है।
कहता तोड़ो आप मुझे और,,
दानवीर-सा हो जाता है।।
मन क्या है?
एक कमल है,,
जो खिलता है कीचड़ में।
मंदिर में जाकर जब वह,,
हरि के चरणों में गिर जाता है।
मानो भक्ति-भाव सलिल में,,
तिर-तिर कर वह तर जाता है।।
मन क्या है?
एक कमल है,,
जो खिलता है कीचड़ में।
जब कीचड़ में खिलता है तब,,
वह कीचड़ को भी महकाता है।
जो पहले था पंक-दुर्वासित,,
सुवासित हरि-चंदन वह कहलाता है।।
मन क्या है?
एक कमल है,,
जो खिलता है कीचड़ में।
मन क्या है?
एक कमल है,,
जो खिलता है कण-कण में।।
________________________भविष्य त्रिपाठी