मन को भाता है पुष्प वही
आए तोड़ हृदय तुम किसका,बैठे हो क्यों आज मुर्झाए।
तोड़ खिलौना खुद भी रोये,उस बच्चे-सा हाल बनाए।।
रूह तुम्हारी ये सच्ची है,
कर बैठा पर मन नादानी,
भूल सुधारो माफ़ी माँगो,
क्यों होते हो पानी-पानी,
तेज़ समय की धारा बहती,संग चलोगे रीत सुहाए।
चाँद-ग्रहण भी लगता देखा,फिर भी रोज गगन में छाए।।
दर्द दिया है लेना सीखो,
कब तक पर छाले फोड़ोगे?
मरहम बनके प्रीत बढ़ाओ,
कब तक मीत तन्हा दौड़ोगे?
थक जाओगे दौड़ अकेले,गिर जाओगे मुँह की खाए।
साथ रहा है सूर्य-किरण का,मिलके दोनों शोभा पाए।।
जल बिन रहती नदिया सूनी,
नाव रहे है पतवार बिना,
कर बिन हाथी पंख बिना खग,
ऐसा जीवन नर नार बिना,
इक सिक्के के हों दो पहलू,अपना-अपना मोल चुकाए।
मन को भाता है पुष्प वही,रंग-सुगंध खिले बिखराए।।
आर.एस.प्रीतम
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