मन को अक्सर याद हैं आते
वो भूली बिसरी सारी बातें
वो बीते गुजरे स्वपनिल लम्हे
वो कच्चे मन के मीठे सपने
मन को अक्सर याद हैं आते
वो खुला खुला छोटा सा घर
वो चौड़ी चौड़ी शान्त डगर
वो मेरे अपने सहपाठी गण
मन को अक्सर याद हैं आते
वो उनकी तिरछी सी नज़र
वो हौली सी दिल की दस्तक
वो शरमाकर फिर मुस्काना
मन को अक्सर याद हैं आते
वो राह जिसे हम भूल चले थे
वो प्रीत जिसे बिसरा बैठे थे
अन्तर्मन से निकल निकल कर
मन को अक्सर याद हैं आते
गूढ़ गहनतम मानव मन पर
छाप छोड़कर दिन औ पल छिन
गुज़र गुज़रकर नहीं गुज़रते
मन को अक्सर याद हैं आते
डॉ सुकृति घोष
ग्वालियर, मध्यप्रदेश