मन के सारे मोड़ सच्चे थे !
मन के सारे मोड़ सच्चे थे
बस रास्ते जरा से कच्चे थे !
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उम्मीदें सारे अच्छे थी
बस बांधी थी जिससे
वो दिल के थोड़े बच्चे थे
कान के जरा से कच्चे थे
वो छले गए हैं,
बहरूपियों के हांथों से
झूठी जुमलों की बातों से,
राम नाम के नारों से
अनर्गल ढेरों वादों से
राष्ट्र भक्ति के जज्बातों से
सैनिकों के लाशों से।
बस,अब हम डरे हुए हैं,
सिसकियों के घातों से
काली निर्जन रातों से
खूनी भेड़ियों के दातों से
उनके बेपरवाह जज्बातों से,
जो पूछ रहे हैं
बस्तिओं को जला-जला कर
उजाला अब तक दिखा नहीं क्या ?
समसानों में जा-जा कर
इंसा आखिर कहां नहीं है,
मरा हुआ तो क्या हुआ
दस्तावेजों में क्या जिन्दा नहीं है ?
वो पूछ रहे हैं, सांसे क्यूँ उखड़ी हुई है ?
राष्ट्र और धर्म जब चौतरफा बिखरी हुई है ?
तुम राष्ट्र को खाओ, राष्ट्र को पहनो
राष्ट्र बिछाओ और
उसे ओढ़ कर तुम सो जाओ
जागोगे तो पाओगे
राष्ट्र से बड़ा एक इंसान हुआ
वो बाकई में भगवान हुआ
अब तुम्हें
भोजन,पानी, बस्त्र, रोजगार
बेटी कि मान और सम्मान
क्यूँकर चाहिए ?
भगवान से बढ़ कर
क्या तुम्हें,ये सब चाहिए ?
…सिद्धार्थ …