अन्तर्मन
मन के शिखर पर,
निराशा के धुंध छाएं है।
हृदय के सागर में,
वेदना के स्वर समाएं हैं।
अभिलाषाओं पर कहर ढहीं,
तब सुप्त व्यथा की लहर बही।
अन्तर्मन फिर व्यथित हुआ,
और करुण हृदय भी द्रवित हुआ।
।। रुचि दूबे।।
मन के शिखर पर,
निराशा के धुंध छाएं है।
हृदय के सागर में,
वेदना के स्वर समाएं हैं।
अभिलाषाओं पर कहर ढहीं,
तब सुप्त व्यथा की लहर बही।
अन्तर्मन फिर व्यथित हुआ,
और करुण हृदय भी द्रवित हुआ।
।। रुचि दूबे।।